मानव सभ्यता के इतिहास को समझने के लिए उसकी भाषा और लिपि का ज्ञान आवश्यक है। भारत की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक, सिंधु-सरस्वती सभ्यता, आज भी कई रहस्यों से भरी हुई है। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहरें और शिलालेख यह दर्शाते हैं कि उस समय लोग एक विशेष भाषा और लिपि का उपयोग करते थे। हालांकि, वैज्ञानिक और इतिहासकार अब तक इस भाषा को पूरी तरह से पढ़ने में असफल रहे हैं, जिससे इसे दुनिया की सबसे बड़ी अनसुलझी भाषाओं में से एक माना जाता है। आइए, इस भाषा के रहस्यों पर एक नज़र डालते हैं।
सिंधु-सरस्वती सभ्यता का विकास
सिंधु-सरस्वती सभ्यता, जिसे हड़प्पा या सिंधु घाटी सभ्यता भी कहा जाता है, लगभग 3300 ईसा पूर्व से 1500 ईसा पूर्व के बीच विकसित हुई। इसका विस्तार वर्तमान पाकिस्तान, पश्चिमी भारत, हरियाणा, पंजाब और गुजरात तक था। यह सभ्यता अपने उत्कृष्ट नगर नियोजन, जल प्रबंधन, व्यापार और सामाजिक संरचना के लिए प्रसिद्ध थी। खुदाई में यहां से मिली सील, मिट्टी के बर्तन, धातु की वस्तुएं और ईंटों पर बने चिन्ह इस बात का प्रमाण हैं कि उस समय एक व्यवस्थित लेखन प्रणाली मौजूद थी। हालांकि, इस लिपि को अभी तक पूरी तरह से पढ़ा नहीं जा सका है, जिससे यहां बोली जाने वाली भाषा भी एक रहस्य बनी हुई है।
सिंधु लिपि की विशेषताएँ
सिंधु लिपि के अधिकांश लेखन छोटे होते हैं, जिनमें आमतौर पर 5 से 10 चिन्ह होते हैं। सबसे लंबे लेखन में केवल 26 चिन्ह पाए गए हैं। इसके कई चिन्ह चित्रात्मक प्रतीकों जैसे जानवर, पेड़, मनुष्य और ‘एक-सींग वाला बैल’ के रूप में दिखाई देते हैं। इसके अलावा, अधिकांश अभिलेख दाएँ से बाएँ लिखे गए हैं, लेकिन कुछ स्थानों पर बाएँ से दाएँ और ‘बूस्ट्रोफेडॉन’ शैली भी पाई जाती है। कई शोधकर्ताओं का मानना है कि कुछ चिन्ह विभिन्न संदर्भों में अलग-अलग अर्थ रखते थे, जिसे ‘rebus principle’ से जोड़ा जाता है।
भाषा के रहस्यों की खोज
विद्वानों के बीच सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि सिंधु-सरस्वती सभ्यता की भाषा किस परिवार से संबंधित थी। कुछ इसे द्रविड़ भाषा मानते हैं, जबकि अन्य इसे वैदिक संस्कृत या इंडो-आर्यन भाषाओं का प्रारंभिक रूप मानते हैं। इसके अलावा, सिंधु लिपि को अब तक पढ़ा नहीं जा सका है। मिस्र की चित्रलिपि और मेसोपोटामिया की लिपि को समझने में द्विभाषी अभिलेखों की मदद मिली, लेकिन सिंधु सभ्यता में ऐसा कोई अभिलेख नहीं मिला।
आधुनिक शोध और निष्कर्ष
वर्तमान में, सिंधु लिपि को समझने के लिए कंप्यूटर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग किया जा रहा है। मशीन लर्निंग और पैटर्न रेकग्निशन जैसी तकनीकें यह संकेत देती हैं कि इस लिपि में एक संगठित व्याकरण और नियम हो सकते हैं। कई विद्वानों ने विभिन्न मत प्रस्तुत किए हैं, जैसे कि तमिल विद्वान आइरावथ महादेवन इसे द्रविड़ भाषाओं से जोड़ते हैं, जबकि श्रीकांत तळगेरी इसे संस्कृत और वैदिक संस्कृति से जोड़ते हैं। इस विषय पर बहस जारी है, और भारत, अमेरिका और यूरोप के विश्वविद्यालय मिलकर शोध कर रहे हैं।
भारतीय इतिहास में महत्व
सिंधु-सरस्वती भाषा को समझना भारत के इतिहास की एक महत्वपूर्ण कड़ी को जोड़ने जैसा है। इससे हमें प्राचीन समाज, संस्कृति, और उस समय के ज्ञान-विज्ञान की वास्तविक झलक मिल सकती है। कई विद्वान मानते हैं कि इसका वैदिक संस्कृति से गहरा संबंध हो सकता है। यदि इस भाषा का रहस्य सुलझता है, तो यह भारत की समृद्ध भाषाई परंपरा को और मजबूत करेगा, जो न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरी मानवता के लिए महत्वपूर्ण है।
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